नई दिल्ली (ट्रेवल पोस्ट) Study in America : अमेरिका में प्रमुख तौर पर दो तरह की वीजा कैटेगरी होती है, जिसमें नॉन-इमिग्रेंट और इमिग्रेंट वीजा शामिल हैं। एफ-1 वीजा नॉन-इमिग्रेंट कैटेगरी का होता है, जिसका मतलब है कि पढ़ाई खत्म होने के बाद छात्र अपने देश लौट जाएगा। इमिग्रेंट वीजा वो होता है, जिसके जरिए अमेरिका में स्थायी रूप से रहने की इजाजत मिलती है। भारतीयों के बीच पॉपुलर एच-1बी वीजा वैसे तो नॉन-इमिग्रेंट वीजा है, लेकिन इसे हासिल करने वाले शख्स को लेकर माना जाता है कि वो यूएस में स्थायी निवास चाहता है।
अमेरिका में पढ़ाई पूरी करने के बाद एफ-1 वीजा होल्डर्स को ऑप्शन प्रैक्टिकल ट्रेनिंग (OPT) के लिए अप्लाई करने का मौका मिलता है। इसके तहत भारतीय छात्र एक साल तक अमेरिका में काम कर सकते हैं। साइंस, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग और मैथ्स की फील्ड के स्टूडेंट्स को दो साल नौकरी का मौका मिलता है। भले ही ओपीटी स्टेटस को नॉन-इमिग्रेंट वीजा माना जाता है, लेकिन ये अमेरिका में आगे चलकर काम करने के लिए बेहद ही जरूरी साबित होता है।
एक बार जब भारतीय छात्र का ओपीटी स्टेटस एक्सपायर हो जाए तो उसे तुरंत एच-1बी वीजा ले लेना चाहिए। ये वीजा उन लोगों को दिया जाता है, जो किसी खास फील्ड में नौकरी करना चाहते हैं और उनके पास बैचलर्स डिग्री है। छात्र खुद से इसके लिए अप्लाई नहीं कर सकता है, ये काम उसकी कंपनी का होता है। कुछ ऐसी भी कंपनियां होती हैं, जहां काम करने के दौरान ग्रेजुएट होते ही एच-1बी वीजा मिल जाता है। ये वीजा तीन साल का होता है, जिसे तीन साल एक्सटेंड भी किया जा सकता है।
Study in America : परमानेंट रेजिडेंसी के लिए अप्लाई करें
एच-1बी वीजा पर अमेरिका में छह साल रहने और काम करने के बाद आपकी कंपनी आपकी तरफ से ग्रीन कार्ड के लिए अप्लाई कर सकती है। एच-1बी वीजा से एंप्लायर बेस्ड ग्रीन कार्ड को पांच कैटेगरी में बांटा गया है। इसमें पहली प्राथमिकता ईबी-1 वीजा को दी जाती है, जो उन लोगों को मिलता है, जिनके पास साइंस, आर्ट्स, एजुकेशन, बिजनेस की फील्ड में असाधारण प्रतिभा है। अगर आपको इंप्लॉयमेंट बेस्ड वीजा के लिए चुन लिया जाएगा तो फिर आपको परमानेंट रेजिडेंसी यानी ग्रीन कार्ड मिल जाएगा।
